एक शहर को दूर से देखा था हमने ,
भयानक सा.
जहा भट्टी में पिस्ता था बचपन,
और निकलते थे खौफनाक अरमान.
जहा दलाल बन बैठे थे भगवान,
और खो गए थे दोस्ती के उसूल.
जहा जेल में बंद बैठे थे शरारत और हंसी,
और जेलर थे खुद के ही माँ बाप.
जहा सपने भी थे काले,
और दोस्त बदल से गए.
खुशनसीब थे हम,
की दूर से ही देखा था हमने वो शहर,
जहा ज़िन्दगी किताबों में बीत गयी,
और उम्मीदों ने दम तोड़ दिया.
एक शहर के बारे में बड़ा सुना था हमने,
जहा हर शख्स नाखुश था, पता नहीं किससे पर था ज़रूर.
बस यही सुना था हमने उस शहर के बारे में.
जहा कोटा में दोस्ती का कोटा ही ना रहा,
और दोस्त बदल से गए .