Saturday, 24 March 2012

कोटा

एक शहर को दूर से देखा था हमने ,
भयानक सा. 
जहा भट्टी में पिस्ता था बचपन,
और निकलते थे खौफनाक अरमान.
जहा दलाल बन बैठे थे भगवान, 
और खो गए थे दोस्ती के उसूल.
जहा जेल में बंद बैठे थे शरारत और हंसी,
और जेलर थे खुद के ही माँ बाप.
जहा सपने भी थे काले,
और दोस्त बदल से गए.
खुशनसीब थे हम,
की दूर से ही देखा था हमने वो शहर,
जहा ज़िन्दगी किताबों में बीत गयी,
और  उम्मीदों ने  दम तोड़ दिया.
एक शहर के बारे में बड़ा सुना था हमने,
जहा हर शख्स नाखुश था, पता नहीं किससे पर था ज़रूर.
बस यही सुना था हमने उस शहर के बारे में.
जहा कोटा में दोस्ती का कोटा ही ना रहा,
और दोस्त बदल से गए .

Wednesday, 14 March 2012

जेब .

आज अरसो बाद जेब टटोली,

कुछ पल मिले दो चार.
सबसे छिपाकर , सबसे प्यारे!

पेन और कागज़ मिले,
शायद लिखने की इच्छा दिल में ही रह गयी थी.
और बच गए कुछ आधे अधूरे लेख, अरमानो के.

एक खुद का पासपोर्ट साइज़ फोटो मिला,
भौंडी सी शक्ल लिए एकटक घूरता हुआ.
शायद मुझसे कुछ पूछ रहा था.

एक सपना भी मिला,
माँ का था या पिताजी का, मालूम नहीं. 
क्या पता खुद का ही हो.

कुछ कहानियां मिली,
खट्टी मीठी, दिल को गुदगुदा देने वाली,
कुछ तो सच्ची थी और कुछ खुद ही बनायीं थी.
मोहल्ले की उस लड़की को हँसाने के लिए.

कुछ यार भी मिले,
गालियाँ मिली और हंसी भी.

कुछ यार भी मिले,
सबसे बेकार, सबसे निठ्ठले. 
सबसे छिपाकर ,सबसे प्यारे.