Wednesday 25 January 2012

जश्न !

दिल्ली की इस चकाचौंध में,
 भूल गए हैं की कभी घरो में बिजली का आना भी एक जश्न था.

एक हंसी थी बिखरी पड़ी..जो रूठ कर कहीं छिप गयी हैं इस ठण्ड में.
की कभी सर्दियों का आना भी एक जश्न था. 

 "मैं और तू" के concrete मकानों के बीच, भूल गए हैं की हम भी कभी "हम" थे.
की कभी गप्पे लड़ाना भी एक जश्न था.

थोडा वक़्त मिलता दोस्त तो हम भी बताते,
की कभी शाम को घर आना भी एक जश्न था.

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